पंडित दीनदयाल उपाध्याय : 25 सितम्बर, 1916 - Rashtra Samarpan News and Views Portal

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Saturday, October 6, 2018

पंडित दीनदयाल उपाध्याय : 25 सितम्बर, 1916



पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के शब्दों में “भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन है। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।” संस्कृतिनिष्ठ दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवनदर्शन का यह पहला सूत्र है।

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय महान चिंतक थे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानव दर्शन जैसा प्रगतिशील विचार दिया। उन्होंने एकात्म मानव दर्शन पर श्रेष्ठ विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक एकात्म मानवदर्शन में साम्यवाद और पूंजीवाद, दोनों की समालोचना की है। एकात्म मानव दर्शन में मानव जाति की मूलभूत आवश्यकताओं और सृजित कानूनों के अनुरुप राजनीतिक कार्रवाई हेतु एक वैकल्पिक सन्दर्भ दिया गया है। दीनदयाल उपाध्याय का मानना है कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति हैं।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916, को वर्त्तमान उत्तर प्रदेश की पवित्र ब्रजभूमि मथुरा के नगला चंद्रभान नामक गाँव में हुआ था। इनके बचपन में एक ज्योतिषी ने इनकी जन्मकुंडली देख कर भविष्यवाणी की थी कि आगे चलकर यह बालक एक महान विद्वान एवं विचारक बनेगा, एक अग्रणी राजनेता और निस्वार्थ सेवाव्रती होगा मगर ये विवाह नहीं करेगा। अपने बचपन में ही दीनदयालजी को एक गहरा आघात सहना पड़ा जब सन 1934 में बीमारी के कारण उनके भाई की असामयिक मृत्यु हो गयी। उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा वर्त्तमान राजस्थान के सीकर में प्राप्त की। विद्याध्ययन में उत्कृष्ट होने के कारण सीकर के तत्कालीन नरेश ने दीनदयालजी को एक स्वर्ण पदक, पुस्तकों के लिए 250 रुपये और दस रुपये की मासिक छात्रवृत्ति से पुरष्कृत किया।

दीनदयालजी ने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पिलानी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। दीनदयाल जी परीक्षा में हमेशा प्रथम स्थान पर आते थे। उन्होंने मैट्रिक और इण्टरमीडिएट - दोनों ही परीक्षाओं में गोल्ड मैडल प्राप्त किया था। तत्पश्चात वे बी.ए. की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कानपूर आ गए जहां वे सनातन धर्म कॉलेज में भर्ती हो गए। अपने एक मित्र श्री बलवंत की प्रेरणा से सन 1937 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। कानपुर में उनकी मुलाकात श्री सुन्दरसिंह भण्डारी जैसे कई लोगों से हुई। इन लोगों से मुलाकात होने के बाद दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में रुचि लेने लगे। उसी वर्ष उन्होंने बी.ए. की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद एम.ए. की पढ़ाई के लिए आगरा आ गए। आगरा में  संघ कार्य करते समय उनका परिचय श्री नानाजी देशमुख और श्री भाउ जुगडे से हुआ।

दीनदयाल उपाध्याय के अन्दर की पत्रकारिता तब प्रकट हुई जब उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ में वर्ष 1940 के दशक में कार्य किया। उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’ और एक दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’ शुरू किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया। उनकी अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में ‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘जगतगुरू शंकराचार्य’, ‘अखंड भारत क्यों’, ‘राष्ट्र जीवन की समस्याएं’, ‘राष्ट्र चिंतन’ और ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ आदि हैं।

भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा वर्ष 1951 में की गई एवं दीनदयाल उपाध्याय को महासचिव नियुक्त किया गया। वे लगातार दिसंबर 1967 तक जनसंघ के महासचिव रहे। उनकी कार्यक्षमता, संगठन कुशलता जैसे गुणों से प्रभावित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी गर्व से सम्मानपूर्वक कहते थे कि - ‘यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं’। परंतु 1953 में अचानक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्यायजी के युवा कंधों पर आ गयी। उन्होंने लगभग 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की। भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन के निर्माता दीनदयालजी का उद्देश्य स्वतंत्रता की पुर्नरचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टी प्रदान करना था। दीनदयालजी जनसंघ की आर्थिक नीति के रचनाकार थे। आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है यह उनका विचार था।

11 फरवरी, 1968 को पं. दीनदयालजी की रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई। मुगलसराय रेलवे यार्ड में उनकी लाश मिलने से सारे देश में शौक की लहर दौड़ गई थी। अपने प्रिय नेता के खोने के बाद भारतीय जनसंघ के कार्यकर्ता और नेता अनाथ हो गए थे। पर सच तो यह है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे लोग समाज के लिए सदैव अमर रहते हैं।

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