Chhath Puja : छठ पर्व - Rashtra Samarpan News and Views Portal

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Monday, November 12, 2018

Chhath Puja : छठ पर्व

दीपावली के तीसरे दिन से शुरू होकर छठे दिन तक होने वाला छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। चार दिनों के इस पर्व के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है जिसे "नहाय खाय" भी कहा जाता है , इस दिन छठ व्रत करने वाले शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं । हिन्दू तिथि के अनुसार कार्तिक मास में मनाये जाने वाले इस पर्व को कार्तिकी छठ भी कहा जाता है।यह पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। छठ पूजा सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है। इस पूजा में किसी भी तरह की मूर्तिपूजा शामिल नहीं होती है।
इतिहास :
छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने भगवन सूर्य की पूजा शुरू की थी । कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
द्रोपदी ने भी छठ व्रत रखा था:
महाभारत में ही पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है।जब पांडव अपना सारा राजपाठ हार गए तब द्रोपदी ने छठ व्रत रख कर पांडवों को उनका सारा राजपाठ वापस दिलवा दिया।वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व:


छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।
इस पर्व के केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पंडित व् पुजारी की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के सहयोग की जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से किये गये सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।


नहाय खाय (11/11/2018)


पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रति के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।


लोहंडा और खरना (12/11/2018)


दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।


सायं अर्घ्य (13/11/2018)


तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ,जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रति एक नियत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है; इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले जैसा दृश्य बन जाता है।


सुबह का अर्घ्य (14/11/2018)


चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रति वहीं पुनः इकट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने पूर्व संध्या को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। सभी व्रति तथा श्रद्धालु घर वापस आते हैं, व्रति घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्म बाबा कहते हैं वहाँ जाकर पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात् व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं।

छठ पर्व में गाए जाने वाले गीत बड़े ही मनमोहक होते हैं। व्यक्ति स्वत खो जाता है, एवं भक्ति भाव से ओतप्रोत हो जाता है। इस पर्व की कई खासियत है इसमें हर व्यक्ति अपने आप को हर वक्त छठी मैया को प्रसन्न करने में लगा रहता है।

हिंदू धर्म का यह पर्व अपने आप में कई संदेश देने का भी प्रयास करता है उदाहरणार्थ छठ पर्व के शुरू होने से पहले ही हर इलाके में साफ सफाई हेतु अभियान चलाए जाते हैं जिसके लिए कोई सरकारी आदेश की जरूरत नहीं होती। कई तरह के निस्वार्थ भाव से समितियां बनती हैं जो समूह बनाकर सरकार और सरकारी व्यवस्था का भी सदुपयोग भी किया जाता है, और इस कार्य में प्रशासन भी हर प्रकार से सहयोग करने से नहीं हिचकते, उसका उपयोग चाहे सुरक्षा व्यवस्था में हो या छठ घाट की साफ सफाई हेतु हो।

हिंदू धर्म के इस पर्व में धर्म और जाति दोनों में कोई भेदभाव नहीं रहता। हर जाति के लोग इस पर्व में एक दूसरे के सहयोग करते नजर आते हैं । सादगी और स्वच्छता से भरपूर यह पर्व हर प्रकार के बंधन जैसे ऊंच-नीच, जात पात, छुआछूत , छल प्रपंच जैसी कुरीतियों को मुंह तोड़ जवाब रहता है।

प्रकृति के नजदीक रहने वाला यह पर्व यह भी दर्शाता है कि हिंदू धर्म अपने आप में सब का सम्मान करने वाला धर्म है।

Ritesh Kashyap

Twitter @meriteshkashyap

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