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Saturday, December 22, 2018

गुरु गोबिन्द सिंह : सिक्खों के दसवें धार्मिक गुरु


गुरु गोबिन्द सिंह सिक्खों के दसवें धार्मिक गुरु, योद्धा और कवि थे. वे सिर्फ 9 वर्ष की आयु में सिक्खों के अंतिम सिक्ख गुरु बने.
1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की. उनके “पांच धर्म लेख” सिक्खों का हमेशा मार्गदर्शन करते हैं. सिक्ख धर्म की स्थापना में उनका योगदान उल्लेखनीय था. उन्होंने 15वीं सदी में प्रथम गुरु, गुरु नानक द्वारा स्थापित गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया व गुरु रूप में सुशोभित किया.
गोबिंद सिंह जी ने 22 दिसम्बर, 1666 को पटना साहिब, बिहार में जन्म लिया था. जब उनका जन्म हुआ तो उस वक्त उनके पिता जी बंगाल और असम में धर्म उपदेश देने के लिए गए हुए थे. जन्म के समय उनका नाम गोबिंद राय रखा गया, वो अपने माता और पिता के इकलौती संतान थे. जन्म के बाद चार वर्ष तक वो पटना में रहे और अब उनका घर “तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब” के नाम से जाना जाता है.
जन्म के चार वर्ष बाद 1670 में वे अपने परिवार संग अपने घर पंजाब लौट आए और दो वर्ष तक वहां रहे.
जब वे 6 वर्ष के हुए तो 1672 मार्च में वे चक्क नानकी चले गए जो हिमालय की निचली घाटी में स्थित है. वहां उन्होंने अपनी शिक्षा शुरू की.
चक्क नानकी शहर की स्थापना श्री गोबिंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर जी ने की थी, जिसे आज “आनंदपुर साहिब” के नाम से जाना जाता है. उस स्थान को उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह के जन्म से मात्र एक वर्ष पहले 1665 में बिलासपुर शासक से खरीदा था. उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी ने अपनी मृत्यु से पहले ही गुरु गोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था.
बाद में मात्र 9 वर्ष की उम्र में 29 मार्च, 1676 में गोबिंद सिंह 10वें सिक्ख गुरु बने.
सन् 1699 में बैसाखी के दिन 14 अप्रैल को उन्होंने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिक्खों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है.
गुरू गोबिन्द सिंह जी ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित भी किया.
उन्होंने मुगलों और उनके खास सहयोगियों के साथ 14 युद्ध लड़े, जिसमें उन्होंने अपने दो बेटों को खो दिया. धर्म के लिए उन्होंने समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें “सर्वस्वदानी” भी कहा जाता है. इसके अलावा वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि और कई नामों, उपनामों और उपाधियों से भी जाने जाते हैं.
उनके सेनापति श्री गुर सोभा के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह के दिल के ऊपर एक गहरी चोट लग गयी थी. जिसके कारण 07 अक्टूबर, 1708 को, हजूर साहिब नांदेड़ में 42 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया.
गुरू गोबिन्द सिंह साहिब को कोटि कोटि नमन.

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