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Thursday, February 6, 2020

झारखंड के मुख्यमंत्री का नाम अमित शाह नहीं हेमंत सोरेन है : जगरनाथ महतो



रिपोर्ट : झूलन अग्रवाल / रीतेश कश्यप

रामगढ़/ गोला ।। बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो उन्हें बेहतर शिक्षा के लिए स्कूल भेजा जाता है ताकि उन्हें किताबी ज्ञान के साथ-साथ देश दुनिया की भी जानकारी मिल सके। मगर वही बच्चे जब स्कूल में पढ़ने के बाद भी अपने राज्य के मुखिया का नाम भी ना जान पाए तो हैरान होना लाजमी है।

ऐसा ही कुछ रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड क्षेत्र के बड़की कोईया स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय में झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो औचक निरीक्षण करने पहुंच गए। विद्यालय के शिक्षकों ने भी सोचा नहीं होगा कि झारखंड के शिक्षा मंत्री ही विद्यालय में पहुंच जाएंगे साथ ही वह ऐसे सवाल करेंगे जिससे विद्यालय के शिक्षकों पर ही सवालिया निशान खड़ा हो जाएगा। जगरनाथ महतो जब स्कूल पहुंचे तो वहां की स्थिति देखकर उन्हें भी बड़ी हैरानी हुई। स्कूल का भवन पूरी तरह से जर्जर हो चुका था, कई जगह पर छत टूटी हुई थी, और कहीं-कहीं की छत गिरने की हालात में थे। स्कूल के ऊपर से बिजली की नंगी तार गुजर रही थी।

जब विद्यालय के अंदर मंत्री महोदय का आगमन हुआ तो बच्चों ने उनका अभिवादन किया लगे हाथ मंत्री जी ने बच्चों से सवाल दाग दिया और पूछा की झारखंड के मुख्यमंत्री कौन है। सवाल का जवाब सुनकर मंत्री महोदय हक्के बक्के रह गए बच्चों ने कहा झारखंड के मुख्यमंत्री का नाम अमित शाह है। उसके बाद उन्होंने बड़ी हिम्मत करके पूछा कि झारखंड के शिक्षा मंत्री का नाम क्या है तो बच्चों ने हेमंत सोरेन का नाम लिया। मंत्री जी ने आगे सवाल जवाब करना उचित ना समझा और अंत में बच्चों को बताया कि वही हैं झारखंड के शिक्षा मंत्री और उनका नाम जगरनाथ महतो है।

इस स्थिति के बाद उन्होंने शिक्षकों से वहां के बीएसई का नाम और नंबर मांगा तो पता चला कि वहां के शिक्षकों को अपने अधिकारियों का ना तो नाम पता है और ना ही नंबर। अंत में जगरनाथ महतो ने सभी शिक्षकों को फटकार लगाई और कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी साथ ही उन्होंने शिक्षा व्यवस्था पर किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त न करने की बात कही।

अपनी बात

ऐसा नहीं है कि यह स्थिति सिर्फ रामगढ़ के गोला क्षेत्र में ही देखने को मिलेगी बल्कि झारखंड के कई विद्यालयों में यही स्थिति देखने को मिल सकती है। एक ओर जहां सरकार अपने शिक्षकों और विद्यालयों पर करोड़ों खर्च कर रही है।  वहां शिक्षा की यह स्थिति देखने के बाद कोई भी समझदार और बुद्धिमान अभिभावक ऐसे विद्यालयों में अपने बच्चों को नहीं भेजना चाहेगा जहां इस तरह की शिक्षा प्रणाली हो। सच्चाई यही है कि सरकार बच्चों की शिक्षा से ज्यादा बच्चों की सुविधाओं पर अधिक ध्यान देने का प्रयास करती है जैसे बच्चों को साइकिल जरूर मिलनी चाहिए, बच्चों को भोजन में कोई कमी नहीं होनी चाहिए, बच्चों को हर वह सुविधा मिलनी चाहिए जिसकी लालच वजह से बच्चे हैं स्कूल आ सकें। जिस शिक्षक का काम बच्चों को सही और उचित शिक्षा देना है उन्हें साइकिल वितरण स्कूल बैग का वितरण भोजन वितरण आदि का मैनेजर बना दिया गया। अब भला इतनी जद्दोजहद के बाद एक शिक्षक की बहाली की जाती है और उस बहाली के बाद उसे साइकिल वितरण से लेकर भोजन वितरण तक का मैनेजर बना दिया जाता है तो स्कूल का यह हाल होना लाजमी है।  इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उन बच्चों को इन सुविधाओं पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है बल्कि इन सुविधाओं के साथ-साथ शिक्षा के मंदिर में पहुंचने वाले हर बच्चे को जो शिक्षा मिलनी चाहिए प्राथमिकता उसी को दी जाए तभी शिक्षा व्यवस्था पर सुधार किया जा सकेगा। खैर शिक्षा मंत्री का इस तरह से किसी भी विद्यालय में पहुंचने से शिक्षकों में भय का माहौल तो रहेगा ही और अपने काम के प्रति निष्ठावान भी जरूर होंगे।


सुलगते सवाल


  • सरकारी स्कूल के शिक्षक का काम पढ़ाने के अलावा अन्य कामों में क्यों लगाया जाता है? 
  • क्या एक विद्यालय के निरीक्षण के बाद झारखंड के अन्य विद्यालयों की स्थिति भी सुधरेगी? 
  • शिक्षकों पर गाज गिराने से पहले सरकार को अपने अंदर झांकने की जरूरत है या नहीं?

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