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Friday, June 12, 2020

झारखण्ड का नाम किया रोशन मगर कोरोना और गरीबी ने सब्जी बेचने पर किया मजबूर


रितेश कश्यप


रामगढ़/घाटो ।।  देेश एवं राज्य का नाम रोशन करने वाली वेस्ट बोकारो की  खिलाड़ी गीता को कहां पता था की दर्जनों मेडल और आधा दर्जन पदक जीतने के बाद भी अपने मां-बाप और खुद के जीवन यापन के लिए सब्जी बेचकर पेट पालने की नौबत  आ जाएगी । उसने तो पुलिस में जाकर देश और परिवार की सेवा करने का सपना देखा था मगर इस तरीके से गीता का सपना पूरा हो सकेगा क्या ?


कौन है गीता ?

वेस्ट बोकारो की रहने वाले  इंद्रदेव प्रजापति और  बुधनी देवी की चार बेटियों में सबसे छोटी बेटी गीता हजारीबाग के आनंदा कॉलेज में बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही है । गीता ने अपने पढ़ाई के साथ-साथ एथलीट बनने का सोचा । उसके माता पिता ने भी उसका भरपूर साथ दिया ।  गीता ने पूर्वी क्षेत्र जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप समेत तमाम प्रति स्पर्धाओं में पदक जीतकर झारखंड सहित अपने माता पिता का गौरव बढ़ाने का काम भी किया । कोरोना की महामारी के बाद वर्तमान में गीता अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए सब्जी बाजार में सब्जी बेचने का कम किया करती है ।

क्या कहा गीता ने ?

हमारे संवाददाता द्वारा इस प्रतिभावान युवती से मिलने और उनकी मजबूरी की वजह जानने की कोशिश में गीता से बात करने की कोशिश की । इस दौरान गीता  ने कहा की उसका सपना पुलिस में जाने का है जहां वह अपनी प्रतिभा के दम पर पुलिस सेवा में जुड़ कर देश और परिवार की सेवा कर सके । गीता ने कहा कि  उनके माता-पिता ने उन्हें काफी गरीबी में पाल पोस कर बड़ा किया है और उन्हें आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रेरित भी किया । अब कोरोना जैसी महामारी आने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति और ख़राब हो गयी इसीलिए उनलोगों के पास सब्जी बेचने के अलावा कोई और चारा नहीं रहा ।

उपलब्धियां

वर्ष 2012 में टाटा स्टील वेस्ट बोकारो एथलेटिक्स ट्रेनिंग सेंटर से गीता जुड़ीं  जिसके प्रशिक्षक राजीव रंजन सिंह के सानिध्य में खुद को तराशना शुरू किया ।  3, 5, 10 और 20 किलोमीटर स्पर्धा में शानदार प्रतिभा की बदौलत नेशनलिस्ट जोन ईस्ट प्रतियोगिता में पदक जीतने के अलावा राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में फार्म मेडल कॉलेज सीट चांसलर ट्राफी में दो मेडल और इंटर कॉलेज गेम्स में 5 पदक अपने नाम किए ।   गीता के माता-पिता का साथ और उसकी मेहनत ने उसे नेशनल ईस्ट जोन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लेकर वर्ष 2013 से 2018 के बीच  करीब आधा दर्जन से अधिक पदक अपने नाम किए ।  पैदल चाल और क्रॉस कंट्री में जौहर दिखाने वाली गीता की कहानी भी झारखंड के उन मजबूर खिलाड़ियों की तरह है जो प्रतिभाशाली होने के बावजूद छोटा-मोटा काम करने को मजबूर हैं । मगर वेस्ट बोकारो के इस एथलीट के गले में दर्जनों मेडल होने के बावजूद आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से उनकी प्रतिभा को जो जगह मिलनी चाहिए थी वह अब तक नहीं मिल पाई है।

क्या कहा क्षेत्र के मुखिया ने ?

घाटो क्षेत्र के मुखिया रणधीर सिंह ने कहा कि गीता ने राज्य और देश को सम्मान दिलाने का कार्य किया है मगर अब उसकी आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से ऐसे प्रतिभावान खिलाड़ियों को भी अभ्यास छोड़कर सब्जी बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है। झारखंड में ऐसे प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं । सरकार ऐसे प्रतिभाओं पर अगर ध्यान दें तो झारखंड सहित पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया जा सकता है। रणधीर सिंह ने झारखंड सरकार से ऐसे खिलाड़ियों सम्मान देने और उन्हें आगे बढ़ाने की बात कही।

राष्ट्र समर्पण की बात ..

राष्ट्र समर्पण भी राज्य एवं केंद्र की सरकार से ऐसे प्रतिभावान खिलाडियों को उचित सम्मान देते हुए आगे बढाने के लिए अनुरोध करती है । अगर ऐसे खिलाडियों पर सरकार ध्यान नहीं देगी तो खेलकूद में आने वाले इक्षुक लोगों में कमी आने की सम्भावना बढ़ जाएगी । झारखण्ड में प्रतिभा की कोई कमी नहीं बस जरुरत है उन्हें उचित समय पर उचित सम्मान देने की ।    

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