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Wednesday, June 9, 2021

बालू के दानों ने बुलंद किया इमारत : #झारखण्डनामा (एक पत्रकार की डायरी)

 एक पत्रकार की डायरी/झारखंडनामा

पात्रों के छद्म नामः कुपेंद्र सिंह, विशेश्वर सिन्हा, मिस्टर वायडू



रांची स्थित कडरू ओवरब्रिज के पास एक मकान में माइनिंग माफियाओं की महफिल सजी है। खान विभाग के साहब के हाथों में भी छलकता हुआ जाम है और अधखुली आंखों की लालिमा छाये सुरूर की कहानी कह रही है। साहब के अधर मस्त अंदाज में फड़फड़ाते हैं। सहसा तमिल गाने के बोल फूट पड़ते हैं। बगल में बैठे मिस्टर वायडू कहते हैं..वेल डन सर.. आपने मुझे नॉस्टेलजिक कर दिया।

थोड़ा और नशा चढ़ते ही साहब लड़खड़ायी आवाज में बोल पड़ते हैं.. कुपेंद्र तुम बालू को ठीक से कंट्रोल नहीं कर रहे हो। अगर ऐसा ही रहा तो ऊपर मैनेज करना मुश्किल हो जाएगा। अगर नहीं सुधरे तो लोहा के साथ बालू भी वायडू के हवाले करना होगा। डर के मारे वायडू की हालत खराब हो जाती है। नहीं सर..प्लीज ऐसा मत कीजिए..बालू का मामला आयरन ओर से ज्यादा कंप्लीकेटेड है। आयरन ओर में तो चंद खिलाड़ी हैं.. कभी इनवायरमेंटल क्लीयरेंस और कभी माइनिंग प्लान का डर दिखाओ.. और नहीं तो शाह कमीशन कमीशन की रिपोर्ट दिखा दो,वे डर के मारे सबकुछ करने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन बालू में सैकड़ों प्लेयर हैं..किसका कनेक्शन कहां है..कहना मुश्किल है। मैं नहीं कंट्रोल कर पाऊंगा।

कुपेंद्र सिंह के होठों पर शातिर मुस्कान थिरक उठती है। सर, संतालपरगना से कलेक्शन में थोड़ी कमी आई है। ऊपर की चिंता आप छोड़ दीजिए। मैं सब संभाल लूंगा। यह बानगी है जनता की अनिवार्य जरूरत बालू के सिस्टम को शिकंजा बनाकर जनता के गले में कसने के खेल की कहानी।

यह झारखंड की कोख में अमीरी और गोद में गरीबी की दिनोंदिन गंदी होती जा रही कहानी भी है। यह जनता की बेबसी की कहानी भी है। क्योंंकि, चार गुने ज्यादा दाम पर अवैध बालू हर जगह उपलब्ध है। कहीं बालू की किल्लत मसहूसस नहीं हो रही है। झारखंड में 500 बड़े बालू घाट टेंडर के लिए सूचीबद्ध हैं। बाकी छोटे बालूघाट केवल ग्राम-पंचायतों के काम और निजी जरूरतों के लिए है। टेंडर के लिए सूचीबद्ध 500 बालू घाटों में से 30 में झारखंड सरकार की कंपनी खनन कर रही है। 20 घाटों में अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी खनन हो रहा है। 450 बालू घाटों में दशकों से टेेंडर हुआ ही नहीं, पर अवैध खनन बदस्तूर जारी है। इसे पूरे अवैध खनन नेटवर्क का कंट्रोल कुपेंद्र सिंह के हाथों में है। यह बालू माफिया के उस मकड़जाल की कहानी है जिसे भेदने में झारखंड की अब तक की हर सरकार बेबस महसूस करती रही है। सरकार गिराने और चलाने के खेल को महज ताश की बाजी समझने वाले माइनिंग माफियाओं के रसूख के आगे बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हाकिम से लेकर राजनेता तक नतमस्तक होते रहे हैं। बालू जैसी आम जनता की जरूरत और विकास की आधार सामग्री पर भी माफिया के कब्जे ने विकास के पूरे तंत्र को ही भ्रष्टाचार के आगोश में ले लिया है।

झारखंड में बालू माफिया के किंगपिन कुपेंद्र सिंह के रांची में क़डरू ओवरब्रिज के पास स्थित आवास पर बालू के अवैध धंधे का पूरा मैनेजमेंट काम करता है। जहां से झारखंड की हर अवैध बालू खदान से निकलने वाले एक-एक ट्रक का हिसाब होता है। बालू का वैध कारोबार करने वाली झारखंड सरकार की कंपनी को भी हर डीलर और वितरक की जानकारी हर घंटे यहां दर्ज करानी होती है। सच तो यह है कि झारखंड सरकार की कंपनी के अलावा अधिकतर बालू खदानों पर तलवार लटकी हैं। क्योंकि तीन साल के पट्टों पर खनन करने के बाद ही इन लोगों ने माइनिंग प्लान और पर्यावरण प्लान मंजूर कराए हैं। इसके बाद तीन साल और खनन की हरी झंडी ले ली है। इस तीन साल का विस्तार कुपेंद्र सिंह की मर्जी के बिना नहीं होता है। हर महीने कुपेंद्र सिंह के मार्फत ही लगभग 200 करोड़ की वसूली खान विभाग के बड़े साहब तक जाती है और वहां से बाकी जगह वितरित होता है।

यहां सजती है माइनिंग माफियाओं की महफिल

कुपेंद्र सिंह ने कडरू ओवरब्रिज के पास कुछ साल पहले नया मकान खरीदा है। यहां खान विभाग का मिनी सचिवालय संचालित होता है। यहां माइनिंग माफियाओं की महफिल सजती है। इसमें खान विभाग के साहब भी शरीक होते है। यहां माइनिंग कंपनियों के आपसी विवादों का भी निपटारा होता है। खान विभाग के हाकिम वजनदार फाइलों पर अंतिम फैसले यहीं लेते हैं। यहीं पर बालू की अवैध कमाई का हिसाब होता है। नेता से लेकर हाकिम तक का हिस्सा भी यहीं तय होता है। फिर ऊपर वालों की खिदमत में यहीं से थैलियां रवाना की जाती हैं। यहां अब कोयला, लोहा और बाकी खनिजों की भी डील होने लगी है। इस धंधे में पहले से लगे दक्षिण भारतीय महाउस्ताद मि. वायडू भी यहां हाजिरी लगाने लगे हैं।

डालटनगंज की दोस्ती ने पूरे झारखंड पर दिलाया कब्जा

कहते हैं कि तकरार से शुरू प्यार काफी ऊंचे तक परवान चढ़ता है। कुपेंद्र सिंह के भी पूरे झारखंड के बालू रैकेट पर कब्जे की कहानी कुछ वैसी ही है। जब खान विभाग वाले साहब डालटनगंज में उपायुक्त थे तो कुपेंद्र सिंह की एक फाइल उनके मेज पर आई। गड़बड़ी देखकर साहब ने मंजूर करने से रोक दिया। तभी वहां पहुंचे खान विभाग के एक अफसर विशेश्वर सिन्हा ने समझाया- साहब सिद्धांत पर चलने से किसी का भला नहीं होता है। मामला फिफ्टी-फिफ्टी का कर लीजिए। जिंदगी भर का वेतन सालभर में डालटनगंज से लेकर जाएंगे। साहब को बात पते की लगी। सौदा जंचा। डालटनगंज के बाद साहब जिस जिले के भी उपायुक्त बने, वहां कुपेंद्र सिंह का साम्राज्य फैलाया। विशेश्वर सिन्हा भी डालटनगंज से खान निदेशालय में आ गए। इस बीच झारखंड सरकार की एक एजेंसी ने एक बालू घाट में 35 लाख वर्गफीट बालू ज्यादा निकालने को लेकर जुर्माने की अनुशंसा की। उस समय के ईमानदार खान सचिव ने कारर्रवाई करने की ठान ली। बस विशेश्वर सिन्हा जी ने मामला संभाला। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव रहे पटना निवासी अपने रिश्तेदार से खान सचिव को फोन कराया और मामला दब गया। कुछ ही दिनों बाद कई जिलों में उपायुक्त रहने के बाद बड़े साहब भी खान विभाग पहुंच गए। पहले ही दिन कुपेंद्र सिंह को बुलाकर कहा कि अब खान विभाग की सरकार तुम्हारे हवाले। बस धंधे पर आंच नहीं आए और काम चलता रहे। बालू घाटों में तुम जो चाहोगे, आगे वही होगा।

पूर्व मंत्री के ट्विट पर बदल डाला पूरा निदेशालय

बड़े साहब के खान विभाग संभालने के कुछ ही दिनों बाद पूर्व मंत्री और अभी निर्दलीय विधायक ने खान विभाग में फैले भ्रष्टाचार पर एक ट्विट किया। इसमें कुपेंद्र सिंह और मि. वायडू के भी नाम थे। ट्विट में दी गई जानकारी काफी गोपनीय थी। इसे लीक करने वाले भेदिए की तलाश होने लगी। कुछ पता नहीं चला। आखिरकार साहब ने निदेशालय के हर अफसर का तबादला कर दिया। इसे पुख्ता कर लिया गया कि खान विभाग में पूर्व मंत्री का कोई भेदिया अब मौजूद नहीं है।

बालू के दानों ने बुलंद किया इमारत

कुपेंद्र सिंह का ठेकेदारी में बालू के दानों से परिचय हुआ और धंधा चोखा लगा। बस फिर क्या था। हुसैनाबाद के सभी बालू घाटों पर अपना झंडा गाड़ दिया। फिर बाहुबल जुटाया और चंद सालों के भीतर पूरे पलामू प्रमंडल में परचम लहरा दिया। नोट से वोट खरीदने का सपना देख चुनाव में भी भाग्य आजमाया, पर पराजय मिली। इसी बीच डालटनगंज में उपायुक्त बनकर गए बड़े साहब से दोस्ती ने पूरे झारखंड के बालू ठिकानों को कब्जे में करा दिया। पैसा इतना कमाया कि पलामू इलाके की एक बंद पड़ी नामी फैक्ट्री को सबसे अधिक बोली लगाकर अपने नाम कर ली। झारखंड में जनता से लेकर नेता तक बालू-बालू की पुकार लगा रहे है। इससे कुपेंद्र सिंह का बाल भी बांका नहीं पा रहा है। उसकी इमारत बुलंद है, पर यह भी सत्य है कि वह बालू की भीत पर खड़ी है।

--विनय चतुर्वेदी जी के फेसबुक वाल से ...

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अब आप सोच रहे होंगे की आखिर कौन वो बालू माफिया ?
कौन है असली कुपेंद्र सिंह, विशेश्वर सिन्हा और मिस्टर वायडू ?

तो इस सवाल का जवाब सरकार और उनके लोगों से पूछना पड़ेगा...

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