गुरुकृपा प्राप्त होने के लिए महत्वपूर्ण चरण - सत्सेवा - Rashtra Samarpan News and Views Portal

Breaking News

Home Top Ad

 Advertise With Us

Post Top Ad


Subscribe Us

Wednesday, July 6, 2022

गुरुकृपा प्राप्त होने के लिए महत्वपूर्ण चरण - सत्सेवा





गुरु प्राप्ति और गुरुकृपा होने के लिए क्या करें ? 


गुरु प्राप्ति के लिए तीव्र मुमुक्षुत्व या तीव्र लालसा, तडप इन गुणों में से एक के कारण गुरु प्राप्ति जल्दी होती है और गुरुकृपा निरंतर रहती है। जिस प्रकार युवा अवस्था में कोई युवक दिन-रात किसी लड़की का प्यार पाने के लिए प्रयास करता है, 'मैं क्या करूं जिससे वह खुश हो जायेगी , यही विचार कर प्रयास करता है, वैसे ही गुरु मुझे अपना कहे, उनकी कृपा प्राप्त हो, इस के लिए दिन-रात इसी बात का चिंतन कर प्रयास करना आवश्यक होता है । कलियुग में, गुरु प्राप्ति और गुरुकृपा पिछले तीन युगों की तरह कठिन नहीं हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य सूत्र यह है कि गुरु की कृपा के बिना गुरु प्राप्ति नहीं होती है। गुरु को पहले से ही पता होता है कि भविष्य में उनका शिष्य कौन होगा।


सर्वश्रेष्ठ सत्सेवा : अध्यात्म प्रसार


गुरु कार्य के लिए आप जो कुछ भी कर सकते हैं उसे करने का यह सबसे आसान और सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। इस सूत्र को निम्नलिखित उदाहरण से देखा जा सकता है: मान लीजिए किसी एक कार्यक्रम की पूर्णता के लिए कोई सफाई कर रहा है, कोई भोजन बना रहा है, कोई बर्तन धो रहा है और कोई आयोजन की तैयारी के लिए सजावट रहा है। हम सफाई कर रहे हैं। अगर कोई दूसरा व्यक्ति साथ आता है और रसोइए के साथ काम करना शुरू कर देता है, तो आप उसके बारे में कुछ भी महसूस नहीं करते हैं। लेकिन अगर वह सफाई में आपकी मदद करने लगे, तो वह अपना लगता है । वैसे ही गुरु का है। गुरुओं और संतों का एकमात्र कार्य सभी को साधना करने के लिए प्रेरित करना और धर्म और साधना के बारे में मिठास पैदा करके समाज में अध्यात्म का प्रसार करना है। अगर हम वही काम अपनी पूरी क्षमता से करें, तो गुरु सोचेंगे, 'यह मेरा है'। ऐसा सोचना ही गुरु कृपा की शुरुआत है।


एक बार एक गुरु ने अपने दो शिष्यों को कुछ गेहूं दिया और कहा, "जब तक मैं वापस नहीं आ जाता तब तक इस गेहूं की देखभाल करना।" एक वर्ष बाद, जब वह वापस आए, तो गुरु पहले शिष्य के पास गए और पूछा, "क्या तुमने गेहूं ठीक से रखा है ?" तो वह गेहूँ का एक डिब्बा ले आया और कहा, "जो गेहूँ आपने दिया था वह वैसा ही है।" तब गुरु दूसरे शिष्य के पास गए और उससे गेहूं के बारे में पूछा। तब वह शिष्य उनको पास के एक खेत में ले गया। उनको हर जगह गेहूं के दानों से ढकी फसल दिखाई दी । यह देखकर गुरुदेव बहुत प्रसन्न हुए। उसी तरह हमें अपने गुरु द्वारा दिए गए नाम, ज्ञान को दूसरों को देकर बढ़ाना चाहिए।


संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ 'गुरुकृपायोग'

No comments:

Post a Comment

Like Us

Ads

Post Bottom Ad


 Advertise With Us