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Wednesday, February 23, 2022

नवजात बच्चों को बचाने में योगदान करनेवालों को सम्मानित करेगी पा-लोना


Sudhir Kumar 

राँची: नवजात बच्चों के परित्याग और हत्या के बढ़ते मामले आज समाज की एक भयावह सच्चाई है। कारण कई हो सकते हैं, परंतु एक मासूम को जीवन और माता-पिता का संरक्षण उसका नैसर्गिक अधिकार है और इस अधिकार को सुनिश्चित करना हम सबों की सामूहिक जिम्मेवारी भी। 



  पा-लोना विगत 7 वर्षों से अपने सीमित संसाधनों के सहारे समाज में इन घटनाओं को रोकने की दिशा में काम कर रहा है। शिशु परित्याग और नवजातों की हत्या की हृदयविदारक घटनाएं समाज के माथे पर एक कलंक के समान है। पा-लोना ने अपने आरंभिक दौर से ही इन मुद्दों के प्रति समाज को जागरूक करने का प्रयास कर रहा है। इन घटनाओं को रोकने की सामूहिक जिम्मेवारी जागरूक समाज की ही है। जब ऐसी जघन्यतम घटनाएं सामने आती है, तो इसी समाज में कुछ ऐसे नायक/नायिकाएं भी सामने आते हैं, जो इन मासूमों के जीवन के संरक्षण के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देते हैं। 

निश्चित रूप से शिशु परित्याग की घटनाओं को रोकने में अपना योगदान देने वाले समाज के हीरो हैं। जो विभिन्न चुनौतियों से लड़ते हुए एक मासूम को पुनर्जीवन देने का पुनीत कार्य करते हैं। लेकिन ऐसे लोग अपने कर्तव्यों के बाद समाज में अदृश्य हो जाते हैं, समाज भी ऐसे ‘अनसंग हीरो’ को भूल जाता है। 

पा-लोना समाज के ऐसे ही नायक/नायिकाओं के प्रति आभार प्रकट कर समाज में एक सकरात्मक संदेश देना चाहता है। ताकि इन घटनाओं को रोकने की दिशा में समाज में एक सकारात्मक बदलाव हो सके। 

पा-लो ना आगामी मार्च माह में राँची में एक ”आभार समारोह“ में समाज के ऐसे नायकों/नायिकाओं के प्रति सार्वजनिक रूप से अपनी कृतज्ञता प्रकट करेगा। ताकि लोगों में इन संवेदनशील मुद्दों के प्रति जागरूकता का प्रसार हो और इन घटनाओं को रोकने की दिशा में आगे आनेवालों को लोगों को समाज मे एक आदर्श के रूप में प्रस्थापित की जा सके।

आभार पानेवालों का चयन समाज के 8 श्रेणी से किया जाएगा।

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1. नवजात बच्चों को बचाने वाले- जो लोग ग्राउंड जीरो पर नवजात शिशुओं को बचाने का प्रयास करते हैं, उन्हें तकलीफदेह हालातों से निकालते हैं। उन्हें अस्पताल तक पहुंचाते हैं या पुलिस व अन्य जिम्मेदार अधिकारियों को सूचित करते हैं।


2. सेंसेटिव पुलिस व अन्य अधिकारी - सरकारी तंत्र को असंवेदनशील माना जाता है। मौजूदा दौर में ये आरोप और गहरा ही हुआ है। लेकिन अभी भी कई अधिकारी ऐसे हैं, जो अपनी संवेदनशीलता से समाज में एक नई इबारत लिखने की कोशिश करते हैं और सकारात्मक बदलाव के वाहक बनते हैं। ऐसे अधिकारी भी इस आभार के सही हकदार हैं, जो-


किसी बच्चे को बचाते हैं।

इससे जुड़े मामले को एक निर्णायक मोड़ तक ले जाते हैं।

किसी तरह की कोई विशेष पहल करते हैं।

कोई विशेष निर्देश या आदेश जारी करते हैं, जिससे इन बच्चों को गलत तरीके से प्रभावित करने वाले कारकों में कमी लाई जा सके।


3. मेंडिकल फील्ड-  इसमें नर्सिंग स्टाफ से लेकर वे डॉक्टर्स व मेडिकल अधिकारी भी शामिल हैं, जो एक मासूम शिशु का जीवन बचाने के लिए आउट ऑफ वे जाकर भी प्रयास करते हैं।


4. इन्फॉर्मर्स- वो सभी लोग जो पा-लो ना को इन घटनाओं की जानकारी देते हैं। इन्फॉर्मेशन शेयर करना इस अपराध को रोकने की दिशा में पहला कदम है।  इनमें आम लोगों के साथ-साथ समाज व सरकार के हर क्षेत्र के लोग शामिल हैं। 



5. मीडिया - वे पत्रकार बंधु, जो अपनी रिपोर्टिंग के जरिए समाज व सरकारी तंत्र को इस अपराध के खिलाफ जागरुक कर रहे हैं, तथ्यात्मक व बैलेंस्ड रिपोर्टिंग कर रहे हैं एवं अपराधी को पकड़वाने में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं, वे सभी इस आभार के पात्र हैं।


6. एसोसिएट ऑर्गेनाइजेशन- जो सरकारी व गैर सरकारी संगठन पा-लो ना को इस लड़ाई में समय समय पर अपना साथ व योगदान देते हैं, वे भी आभार के अधिकारी हैं।



7. इनिशियेटिव्स- शिशु हत्या व शिशु परित्याग रोकने के लिए नए प्रयास, नई पहल करने वाले इस अवार्ड के सही हकदार होंगे।


8. वॉलेंटियर्स- जो लोग स्वैच्छिक रूप से, बिना किसी आर्थिक व अन्य योगदान के पा-लो ना को विभिन्न प्रकार से सहयोग करते रहे हैं, इसके कार्यक्रमों में सम्मिलत होकर उन्हें सफल बनाने में साथ देते रहे हैं या स्वतंत्र रूप से इस लड़ाई को लड़ रहे हैं, वे भी इस आभार के हकदार हैं।


भयावह है आँकड़ें

झारखंड समेत पूरे देश में शिशु परित्याग और शिशु हत्या के आँकड़ें काफी भयावह है। 

एक ओर जहाँ राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार 2015 से 2020 तक अपने राज्य में केवल 4 शिशु हत्या और 3 शिशु परित्याग की घटनाएं ही रजिस्टर की गई, जबकि पालोना के प्रयास से राज्य में इन्हीं समयांतराल में कुल 365 मामले सामने आ चुके है, जिनमें 203 शिशु मृत पाए गए जबकि 159 शिशुओं को बचा लिया गया। 3 की पहचान/जानकारी नहीं मिल सकी। 

इन मामलों में 172 बच्चियां, 129 बच्चे जबकि 64 शिशुओं की पहचान संभव नहीं हो पाई। 

वहीं देश के 6 राज्यों झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान व हरियाणा में NCRB के अनुसार 2015 से 2019 के बीच 395 शिशु हत्या व 4474 शिशु परित्याग के मामले सामने आए है। NCRB के आँकड़े इन मामलों में संदेहास्पद रहे है। ब्यूरो के आंकड़े वास्तविक आंकड़ों से काफी कम होते हैं।

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